दोस्तों ,अगर आप एक कृषक है या कृषक परिवार से है तो आपको जरुर पता होगा वर्मीकम्पोस्ट या जिसको हम केंचुआ खाद कहते है | आज हम केंचुआ खाद की पूरी जानकारी इस पोस्ट के जरिए बताने वाले है जिससे किसानो को यह पता चले की केंचुआ खाद फसलो के लिए कितनी उपयोगी है और किस प्रकार से केंचुआ खाद बनाई जाती है |
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वर्मीकम्पोस्ट क्या है –
वर्मीकम्पोस्ट दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है – वर्म और कम्पोस्ट अर्थात वर्म से तैयार किया गया कम्पोस्ट | वर्मीकम्पोस्ट एक प्रकार की जैविक खाद है जो पशुओ के गोबर से केचुओ की सहायता से तैयार की की जाती है | यह खाद फसलो के लिए बहुत ही लाभप्रद होती है इस खाद में अन्य सभी खादों की तुलना में पोषक तत्व अधिक होते है |
वर्मीकम्पोस्ट का संगठन –
वर्मीकम्पोस्ट में कई पोषक तत्व पाए जाते है जिनको प्रतिशत मात्रा में व्यक्त करते
है –
नाइट्रोजन: 2-3 % ,सल्फर : 1.5-2.0% , पोटाश : 1.0-2.0 %
वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए केंचुओ की उत्तम किस्म –
वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए केंचुओ की उत्तम किस्म Eisenia fetida
(आइसेनिया फेटिडा) है, जिन्हें लाल केंचुए भी कहते है |
Eisenia fetida (आइसेनिया फेटिडा) |
वर्मीकम्पोस्ट या केंचुआ खाद बनाने की विधि –
▶ जिस गोबर या
कचरे से खाद तैयार की जा रही हो उसमे से धातु ,प्लास्टिक, कांच के टुकड़े आदि जिनका
अपघटन नहीं हो सकता है बाहर निकाल दे |
▶ भूमि के ऊपर बैड तैयार करे जैसा की
निचे तस्वीर में दिखाया गया है, बैड का आकार आप अपनी जरूरत के अनुसार रख सकते है
लेकिन गहराई 2-3.6 फीट ही रखे | बैड ऐसी जगह पर तैयार करे जहा पर सीधी धुप ना आती हो
सामान्य धुप रहे |
Vermicompost Bed |
▶ अब इस बैड में 2-3 इंच मोटी बालू रेत या बजरी की परत बिछाए ,इस परत
के ऊपर 5-6 इंच मोटी दोमट मिट्टी की परत
बिछाए | दोमट मिट्टी ना मिलने पर आप इसमें काली मृदा का भी उपयोग कर सकते है |
▶ इस परत के ऊपर आसानी से अपघटित हो जाने
वाले पदार्थ जैसे सब्जियों के छिलके , पेड़-पौधो की पत्तिया आदि की 2-3 इंच मोटी
परत बनाये|
▶ इस परत के उप्पर 2-3 इंच गोबर की खाद
डालते रहे , गोबर ताजा नहीं होना चाहिए ,गोबर 5-10 दिन पुराना होना चाहिए तथा यह
भी ध्यान रखे की गोबर गर्म नहीं होना चाहिए ,इससे केचुओ को नुकसान हो सकता है |
▶ अब इस परत के ऊपर केचुओ को डाल दे ,और
केचुओ को डालने के बाद जब केचुए गोबर के अंदर चले जाए तो इसके ऊपर 2-3 इंच गोबर की
खाद डाल दे और अब इस बैड को घास या चावल की पराली से ढक दे |
▶ अब इस बैड में 40 से 50 प्रतिशत नमी
बनाये रखने हेतु इस पर जल का छिड़काव करते रहे , ज्यादा जल का छिड़काव ना करे अगर
आपको लगे की बैड में नमी की मात्रा कम है तभी जल का छिड़काव करे ,अधिक जल छिड़काव से
केंचुए मर सकते है इसलिए नमी का विशेष ध्यान रखे |
▶ अब इस बैड में खाद को सप्ताह में एक
बार मिलाना चाहिए ,खाद को उलट-पलट करना, ताकि खाद अच्छी तरह से मिल जाए तथा केंचुओ
की क्रियाविधि जारी रहे |
▶ 1 महीने के बाद इसमें सूक्ष्म
छोटे-छोटे केंचुए दिखाई देने लगते है इन केंचुओ की सुरक्षा हेतु पत्तियों या
कूड़े-कचरे की 2 इंच मोटी परत बिछाए और पानी का छिड़काव कर दे |
▶ लगभग 42 दिन बाद खाद यह खाद तैयार हो
जाता है तथा केंचुए नीचे चले जाते है अब
इसमें पानी छिड़काव बिलकुल बंद कर देते है
तथा 45 वे दिन खाद को देखने में यह खाद दानेदार वह चाय पत्ती के रूप में नजर आती
है |
▶ इस खाद के उपयोग के लिए बैड से सावधानी
पूर्वक खाद को निकालते है खाद निकालते समय किसी भी ओजार का इस्तेमाल नहीं करना
चाहिए इससे केंचुओ को हानि हो सकती है तथा खाद निकालने बाद उसे छान लेते है ताकि
खाद से केंचुए अलग हो जाए अब इन केंचुओ को दुसरे बैड में ट्रान्सफर कर देते है |
▶ बैड में केंचुओ की संख्या बढती रहती है
जिससे हम केंचुओ की संख्या के अनुसार ओर बैड भी बना सकते है | इस प्रकार हमारा वर्मीकम्पोस्ट तैयार
हो जाता है |
वर्मीकम्पोस्ट का भूमि/फसलो पर प्रभाव
1. फसलो की पैदावार बढती है |
2. मृदा की भौतिक दशा सुधरती है
जिससे मृदा उपजाऊ होती है |
3. भूमि में खरपतवार कम उगते है |
4. भूमि में पोषक तत्वों की उपलब्धता
बढती है ,तथा टिकाऊ बनी रहती है |
5. भूमि भुरभुरी बनती है ,तथा भूमि की जलधारण क्षमता भी बढती है |
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